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हरा चारा

अब हरे चारे की खेती करने पर मिलेंगे 10 हजार रुपये प्रति एकड़, ऐसे करें आवेदन

अब हरे चारे की खेती करने पर मिलेंगे 10 हजार रुपये प्रति एकड़, ऐसे करें आवेदन

हरा चारा (green fodder) पशुओं के लिए महत्वपूर्ण आहार है, जिससे पशुओं के शरीर में पोषक तत्वों की कमी दूर होती है। इसके अलावा पशु ताकतवर भी होते हैं और इसका प्रभाव दुग्ध उत्पादन में भी पड़ता है। जो किसान अपने पशुओं को हरा चारा खिलाते हैं, उनके पशु स्वस्थ्य रहते हैं तथा उन पशुओं के दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है। हरे चारे की खेती करके किसान भाई अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं, क्योंकि इन दिनों गौशालाओं में हरे चारे की जबरदस्त डिमांड है, 

जहां किसान भाई हरे चारे को सप्प्लाई करके अपने लिए कुछ अतिरिक्त आमदनी का प्रबंध कर सकते हैं। इन दिनों गावों में पशुपालन और दुग्ध उत्पादन एक व्यवसाय का रूप ले रहा है। ज्यादातर किसान इसमें हाथ आजमा रहे हैं, लेकिन किसानों द्वारा पशुओं के आहार पर पर्याप्त ध्यान न देने के कारण पशुओं की दूध देने की क्षमता में कमी देखी जा रही है। इसलिए पशुओं के आहार के लिए हरा चारा बेहद मत्वपूर्ण हो जाता है, जिससे पशु सम्पूर्ण पोषण प्राप्त करते हैं और इससे दुग्ध उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी होती है। 

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हरे चारे की खेती ज्यादातर राज्यों में उचित मात्रा में होती है जो वहां के किसानों के पशुओं के लिए पर्याप्त है। लेकिन हरियाणा में हरे चारे की कमी महसूस की जा रही है, जिसके बाद राज्य सरकार ने हरे चारे की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए 'चारा-बिजाई योजना’ की शुरुआत की है। इस योजना के तहत किसानों को हरे चारे की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान हरे चारे की खेती करना प्रारम्भ करें। 

इस योजना के अंतर्गत सरकार हरे चारे की खेती करने पर किसानों को 10 हजार रुपये प्रति एकड़ की सब्सिडी प्रदान करेगी। यह राशि एक किसान के लिए अधिकतम एक लाख रुपये तक दी जा सकती है। यह सब्सिडी उन्हीं किसानों को मिलेगी जो अपनी जमीन में हरे चारे की खेती करके उत्पादित चारे को गौशालाओं को बेंचेंगे। इस योजना को लेकर हरियाणा सरकार के ऑफिसियल ट्विटर अकाउंट MyGovHaryana से ट्वीट करके जानकारी भी साझा की गई है। https://twitter.com/mygovharyana/status/1524060896783630336

हरियाणा सरकार ने बताया है कि यह सब्सिडी की स्कीम का फायदा सिर्फ उन्हीं किसानों को मिलेगा जो ये 3 अहर्ताएं पास करते हों :

  1. सब्सिडी का लाभ लेने वाले किसान को हरियाणा का मूल निवासी होना चाहिए।
  2. किसान को अपने खेत में हरे चारे के साथ सूखे चारे की भी खेती करनी होगी, इसके लिए उसको फॉर्म में अपनी सहमति देनी होगी।
  3. उगाया गया चारा नियमित रूप से गौशालाओं को बेंचना होगा।

जो भी किसान इन तीनों अहर्ताओं को पूर्ण करता है वो सब्सिडी पाने का पात्र होगा।

कौन-कौन से हरे चारे का उत्पादन कर सकता है किसान ?

दुधारू पशुओं के लिए बहुत से चारों की खेती भारत में की जाती है। इसमें से कुछ चारे सिर्फ कुछ महीनों के लिए ही उपलब्ध हो पाते हैं। जैसे कि ज्वार, लोबिया, मक्का और बाजरा वगैरह फसलों के चारे साल में 4-5 महीनों से ज्यादा नहीं टिकते। इसलिए इस समस्या से निपटने के लिए ऐसे चारा की खेती की जरुरत है जो साल में हर समय उपलब्ध हो, ताकि पशुओं के लिए चारे के प्रबंध में कोई दिक्कत न आये। भारत में किसान भाई बरसीम, नेपियर घास और रिजका वगैरह लगाकर अपने पशुओं के लिए 10 से 12 महीने तक चारे का प्रबंध कर सकते हैं। 

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बरसीम (Berseem (Trifolium alexandrinum))  एक बेहतरीन चारा है जो सर्दियों से लेकर गर्मी शुरू होने तक किसान के खेत में उपलब्ध हो सकता है। यह चारा दुधारू पशुओं के लिए ख़ास महत्व रखता है क्योंकि इस चारे में लगभग 22 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा यह चारा बेहद पाचनशील होता है जिसके कारण पशुओं के दुग्ध उत्पादन में साफ़ फर्क देखा जा सकता है। इस चारे को पशुओं को देने से उन्हें अतिरिक्त पोषण की जरुरत नहीं होती। बरसीम के साथ ही अब भारत में नेपियर घास (Napier grass also known as Pennisetum purpureum (पेन्नीसेटम परप्यूरियम), elephant grass or Uganda grass) या हाथी घास  आ चुकी है। 

यह किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है, क्योंकि यह मात्र 50 दिनों में तैयार हो जाती है। जिसके बाद इसे पशुओं को खिलाया जा सकता है। यह एक ऐसी घास है जो एक बार लगाने पर किसानों को 5 साल तक हरा चारा उपलब्ध करवाती रहती है, जिससे किसानों को बार-बार चारे की खेती करने की जरुरत नहीं पड़ती और न ही इसमें सिंचाई की जरुरत पड़ती है। नेपियर घास की यह विशेषता होती है कि इसकी एक बार कटाई करने के बाद, घास के पेड़ में फिर से शाखाएं निकलने लगती हैं। 

घास की एक बार कटाई के लगभग 40 दिनों बाद घास फिर से कटाई के लिए उपलब्ध हो जाती है। यह घास पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है। रिजका (rijka also called Lucerne or alfalfa (Medicago sativa) or purple medic) एक अलग तरह की घास है जिसमें बेहद कम सिंचाई की जरुरत होती है। यह घास किसानों को नवंबर माह से लेकर जून माह तक हरा चारा उपलब्ध करवा सकती है। इस घास को भी पशुओं को देने से उनके पोषण की जरुरत पूरी होती है और दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है।

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सब्सिडी प्राप्त करने के लिए आवेदन कहां करें

जो भी किसान भाई अपने खेत में हरा चारा उगाने के इच्छुक हैं उन्हें सरकार की ओर से 10 हजार रूपये प्रति एकड़ के हिसाब से सब्सिडी प्रदान की जाएगी। इस योजना के अंतर्गत अप्प्लाई करने के लिए हरियाणा सरकार की ऑफिसयल वेबसाइट 'मेरी फसल मेरा ब्यौरा' पर जाएं और वहां पर ऑनलाइन माध्यम से आवेदन भरें। आवेदन भरते समय किसान अपने साथ आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र, बैंक खाता डिटेल, आधार से लिंक मोबाइल नंबर और पासपोर्ट साइज का फोटो जरूर रखें। ये चीजों किसानों को फॉर्म के साथ अपलोड करनी होंगी, जिसके बाद अपने खेतों में हरे चारे की खेती करने वाले किसानों को सब्सिडी प्रदान कर दी जाएगी। सब्सिडी प्राप्त करने के बाद किसानों को अपने खेतों में उत्पादित चारा गौशालाओं को सप्प्लाई करना अनिवार्य होगा।

जानिए हरे चारे की समस्या को दूर करने वाली ग्रीष्मकालीन फसलों के बारे में

जानिए हरे चारे की समस्या को दूर करने वाली ग्रीष्मकालीन फसलों के बारे में

पशुपालकों को हरा चारा सुनिश्चित करने के लिए काफी अधिक परिश्रम करना पड़ सकता है। भारतीय मौसम विगाग का कहना है, कि इस बार गर्मी अपने चरम स्तर पर पहुँचने की आशंका है। 

विगत दिनों तापमान में सामान्य से अधिक वृद्धि होने की वजह से पशुपालकों के हरे चारे की उपलब्धता में गिरावट आ रही है। क्योंकि, तापमान में वृद्धि होने के कारण खेतों में नमी की मात्रा में गिरावट देखने को मिल रही है। 

हरे चारे पर इसका प्रत्यक्ष तौर प्रभाव देखने को मिल रहा है। इस वजह से पशुपालकों को वक्त रहते ही हरे चारे की व्यवस्था सुनिश्चित कर लेनी चाहिए, जिससे आगामी समय में पशु को पर्याप्त चारा हांसिल हो सके। 

क्योंकि, हरे चारे के अभाव का सीधा प्रभाव पशुओं के दुग्ध उत्पादन क्षमता पर पड़ता है। नतीजतन, पशुपालकों की कमाई में गिरावट आने लगती है। 

हरे चारे की किल्लत को दूर करने वाली फसलें इस प्रकार हैं ?

आप सब ने लोबिया, मक्का और ज्वार  का नाम तो सुना ही होगा। लेकिन, क्या आप जानते हैं, कि लोबिया, मक्का और ज्वार का चारा पशुओं के लिए बेहद लाभकारी होता है। 

इसके अतिरिक्त मक्का, ज्वार और लोबिया फसल लगाने से किसान हरे चारे की किल्लत से छुटकारा पा सकते हैं। क्योंकि, यह एक तीव्रता से बढ़ने वाले हरे चारे वाली फसलें हैं। 

इसके अतिरिक्त इन चारों के साथ सबसे खास बात यह है, कि इनकी खेती करने से खेत की उर्वरक क्षमता को भी प्रोत्साहन मिलता है, जिससे किसान अगली फसल में मुनाफा उठा सकते हैं। वहीं, इसके प्रतिदिन सेवन से पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता में भी इजाफा होता है।

मक्का 

पशुओं के लिए पशुपालक हरा चारा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मक्के की संकर मक्का गंगा-2, गंगा-7, विजय कम्पोजिट जे 1006 अफ्रीकन टॉल, प्रताप चारा-6 आदि जैसी प्रमुख मक्का की उन्नत किस्मों की खेती कर सकते हैं।

ज्वार

गर्मी के मौसम में पशुओं के लिए हरे चारे की किल्लत को दूर करने के लिए ज्वार की पूसा चरी 23, पूसा हाइब्रिड चरी-109, पूसा चरी 615, पूसा चरी 6, पूसा चरी 9, पूसा शंकर- 6, एस. एस. जी. 59-3 (मीठी सूडान), एम.पी. चरी, एस.एस. जी.-988-898, एस. एस. जी. 59-3, • जे.सी. 69. सी. एस. एच. 20 एमजी, हरियाणा ज्वार- 513 जैसी विशेष किस्मों की खेती कर सकते हैं। 

लोबिया 

लोबिया एक वार्षिक जड़ी-बूटी वाली फलियां हैं, जिसकी खेती बीजों अथवा चारे के लिए की जाती है। इसकी पत्तियाँ अंडाकार पत्तों वाली त्रिकोणीय होती हैं, जो 6-15 सेमी लंबी और 4-11 सेमी चौड़ाई वाली होती हैं। 

लोबिया के फूल सफेद, पीले, हल्के नीले या बैंगनी रंग के होते हैं। इसकी फली जोड़े में पाई जाती हैं। इसकी प्रति फली में 8 से 20 बीज होते हैं। इसके साथ ही बीज सफेद, गुलाबी, भूरा या काला होता है।

हरा चारा गौ के लिए ( Green Fodder for Cow)

हरा चारा गौ के लिए ( Green Fodder for Cow)

जिस प्रकार मनुष्य को स्वस्थ रहने और कार्य करने की क्षमता बढ़ाने के लिए भोजन की आवश्यकता पड़ती हैं। उसी  प्रकार पशुओं, गायों को भी अच्छे हरे भरे चारों की आवश्यकता होती है।

ताकि वह उन्हें खाकर  दूध का निर्यात कर सकें। गौ, पशुओं के संतुलित आहार को देखते हुए किसानों द्वारा पशुओं को सूखा चारा, हरा चारा की पूर्ण मात्रा दी जाती है। 

जिससे उन गौ पशुओं को पर्याप्त पोषक तत्वों की सही मात्रा मिल सके। हरे चने द्वारा पशुओं को उनका शरीर विकास करने और ज्यादा से ज्यादा दूध उत्पादन करने की क्षमता मिलती है। यह पोषक तत्व सिर्फ हरे चने से ही प्राप्त हो सकता है।

गौ , पशु चारे के  प्रकार ( Types of Cow, Animal Feed)

best green fodder for cows

चारों के निम्नलिखित प्रकार होते हैं

किसान अपने गौ ,पशुओं को यह दो प्रकार के चारों द्वारा पोषक तत्व देता है। हरे चारों में  एकदलीय तथा द्विदलीय चारों में फसलें मौजूद होती है। हरे चारों के लिए किसान गिनीघास , ज्वार ,मकई, बाजरा, संकरित नेपियर, यशवंत दीनानाथ जयवंत घास आदि एकदलीय चारा की फसलें है। 

द्विदलीय चारा की फसलों के लिए ल्यूसर्न घास, बरसीम स्टाइलो तथा लोबिया आदि मौजूद होते हैं। द्विदलीय फसलों में बहुत मात्रा में पोषक तत्व की प्राप्ति होती है। 

तथा इसमें काफी प्रोटीन भी पाया जाता है। वहीं दूसरी ओर एकदलीय चारे में सिर्फ 4 से 7 प्रतिशत प्रोटीन की ही प्राप्ति होती है। द्विदलीय चारे से लगभग 2 गुना प्रोटीन प्राप्त किया जाता है इसमें अधिकतर 15 से 20% प्रोटीन मौजूद होते हैं।

हरे चारे की योगिता (Green Fodder Yogic)

benefits of green fodder

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पशु आहार के लिए हरे चारे की निम्नलिखित उपयोगिता आए हैं;

  • हरे चारे में पानी अधिक मात्रा में पाया जाता है जो सूखे चारों में नहीं होता। हरे चारे खाकर पशु अपने शरीर में पानी की कमी को दूर करते हैं।
  • हरा चारा काफी स्वादिष्ट व मुलायम होने के कारण पशु इसे बहुत आनंद के साथ खाते हैं।
  • हरे चारे पचने में भी आसान होते हैं। हरे चारे का सेवन करने से पशुओं को आसान मात्रा में घुलनशील शक्कर की प्राप्ति होती है।
  • द्विदलीय चारे के सेवन से पशुओं को खनिज तथा प्रोटीन की प्राप्ति होती है।
  • हरे चारे का सेवन कर पशु की भूख पूर्ण होती है, हरे चारे का सेवन करने से पशुओं का शरीर हमेशा स्वस्थ रहता है।
  • हरे चारे में प्राकृतिक रूप से पोषक तत्व  मौजूद होता है।
  • इसमें मौजूद पौष्टिक तत्व शरीर में विटामिन ए की पूर्ति करते हैं तथा पशुओं के अंधापन को कम करने की क्षमता रखते हैं।
  • हरे चारे द्वारा पशुओं के शरीर को आर्जीनीन, ग्लूटामिक एसिड जैसे महत्वपूर्ण पौष्टिक एसिड तत्वों की प्राप्ति होती है।
  • गर्भावस्था में पशुओं को हरा चना देने से बछड़ा स्वस्थ पैदा होता है।वहीं दूसरी ओर यदि पशुओं को गर्भावस्था में हरा चारा के माध्यम से पौष्टिक तत्व न मिले तो बछड़ा अंधा ,कमजोर या अन्य शारीरिक विकलांगता से पूर्ण पैदा होता है।

पशुओं की स्वास्थ्य की देख भाल : (Health care of animals)

Health care of animals

गौ ,गाय, पशुओं आदि को विभिन्न प्रकार के टीकाकरण करवाना चाहिए। ताकि उनके विभिन्न विभिन्न प्रकार के रोगों की रोकथाम हो सके। उन्हें कोई भी रोग - रोग ग्रस्त ना कर सके। 

इसीलिए नियमित रूप से पशुओं की समय-समय पर जांच कराते रहना उचित होगा। किसान को चाहिए कि वह गौ, पशुओं को कीड़ों की दवाई समय पर दे। साथ ही पशुओं को चिकित्सा अधिकारी द्वारा जांच कराएं।

जावी (जौ) क्या है ( What is Javi Barley)

Javi Barley

जौ गेहूं का ही स्वरूप है। जौ गेहूं कि ही जाति होती है। जिसको हम आटे में पीसकर रोटी बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। प्राचीन काल में ऋषि, मुनि, वैद्य कई कार्यों में जौ का प्रयोग करते थे। 

मुनि और ऋषि आहारों में जौ का सेवन भी करते थे।इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जौ गेहूं हमारे लिए कितना उपयोगी होगा। जौ का इस्तेमाल आयुर्वेद में कई प्रकार की औषधि बनाने के रूप में भी किया जाता है जो कई बीमारियों से हमारे शरीर की सुरक्षा करती है। 

जैसे पेट दर्द होना , कभी कभी भूख ना लगना, दस्त की शिकायत होना , सर्दी जुखाम जैसी समस्या का होना ,ज्यादा प्यास ना लगना आदि जैसे : रोगों से छुटकारा पाने के लिए जौ इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है।

जौ के फायदे ( Benefits of Barley)

जौ के एक नहीं बहुत सारे फायदे होते है।इसमें मौजूद पौष्टिक तत्व जैसे : कैल्शियम पोटैशियम, सैलीसिलिक एसिड ,फॉस्फोरस एसिड, आदि महत्वपूर्ण तत्व पाए जाते हैं। 

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यह महत्वपूर्ण तत्व कई प्रकार के इलाज के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।अतः हर दृष्टिकोण से देखें तो जौ हमारे लिए बहुत ही फायदेमंद है। 

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जौ कहां पाया जाता है ( Where is barley found)

जौ बलुई मिट्टी में बोया जाता है इसके अंदर शीत तथा नमी  सहने की बहुतअधिक क्षमता होती है। जौ का सबसे बड़ा उत्पादन क्षेत्र उत्तर प्रदेश को माना जाता है। 

जहां इसकी भारी मात्रा में पैदावार होती है। तथा जौ का उत्पादन इन राज्यों में भी पाया जाता है जैसे: राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब आदि। यह सभी क्षेत्र भारी मात्रा में जौ की पैदावार करते हैं।

जौ का दूसरा नाम ( another name for barley)

जौ दिखने में गेहूं की तरह होता है जौ को बार्ले नाम से भी पुकारा जाता है तथा या एक खाद्य पदार्थ हैं। लोग इसे आम भाषा में जौ के ही नाम से पहचानते हैं। 

बाकी अनाजों की नजर से देखे तो जौ को लोग काफी कम पसंद करते हैं। लेकिन इसमें कई तरह के पौष्टिक गुण होते हैं  जो बाकी अनाजों में नहीं होते। हरा चारे गौ के लिए कितना महत्वपूर्ण होता है हरे चारे के क्या लाभ होते हैं, तथा हरे चारे से जुड़ी कई प्रकार की जानकारी हमने अपने इस पोस्ट में दी हैं। 

हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारी यह पोस्ट जरूर पसंद आई होगी। यदि आप हमारी इस पोस्ट से संतुष्ट है।तो इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया में और अपने दोस्तों के साथ शेयर करें।

लोबिया की खेती: किसानों के साथ साथ दुधारू पशुओं के लिए भी वरदान

लोबिया की खेती: किसानों के साथ साथ दुधारू पशुओं के लिए भी वरदान

लोबिया को बहुत ही पोषक फसल माना जाता है। इसको पूरे भारत भर में उगाया जाता है। लोबिया के बहुआयामी उपयोग है। जैसे खाद्य, चारा, हरी खाद और सब्जी के रूप में होता है।

लोबिया मनुष्य के खाने का पौष्टिक तत्व है तथा पशुधन चारे का अच्छा स्रोत भी है| ये दुधारू पशुओं में दूध बढ़ाने का भी अच्छा जरिया बनता है तथा इसके खाने से पशु का दूध भी पौष्टिक होता है| 

इसके दाने में 22 से 24 प्रोटीन, 55 से 66 कार्बोहाईड्रेट, 0.08 से 0.11 कैल्शियम और 0.005 आयरन होता है| इसमे आवश्यक एमिनो एसिड जैसे लाइसिन, लियूसिन, फेनिलएलनिन भी पाया जाता है| 

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लोबिया की खेती के लिए खेत की तैयारी:

जैसा की आमतौर पर सभी फसलों के लिए गोबर की बनी हुई खाद बहुत आवश्यक होती है उसी तरह से लोबिया की फसल के लिए भी गोबर की सड़ी खाद बहुत आवश्यक होती है. 

इसके खेत में बुवाई से पहले नाइट्रोजन की मात्रा 20 kg पर एकड़ के हिसाब से मिला देना चाहिए. गोबर की 20-25 टन मात्रा बुवाई से 1 माह पहले खेत में डाल दें। जिससे की खाद में जो भी खरपतवार हो वो उग जाये और नष्ट हो सके| 

खाद डालने के बाद इसमें हैरो से 2 बार जुताई कर दें तथा 1 बार कल्टीवेटर निकाल दें जिससे की मिटटी मिलाने के साथ साथ इसमें गहराई भी आ सके| 

मिटटी और उर्वरक:

इसको किसी भी तरह की मिटटी में उगाया जा सकता है. वैसे इसके लिए रेतीली और दोमट मिटटी उपयुक्त रहती है. जल निकासी की सामान्य व्यवस्था होनी चाहिए. खेत में पानी रुकना नहीं चाहिए. 

लोबिया एक दलहनी फसल है, इसलिए नत्रजन की 20 कि.ग्रा, फास्फोरस 60 किग्रा तथा पोटाष 50 किग्रा/हेक्टेयर खेत में अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए तथा 20 किग्रा नत्रजन की मात्रा फसल में फूल आने पर प्रयोग करें। 

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मौसम और बोने का समय:

मौसम की अगर हम बात करें तो इसके लिए गर्म और नमी वाला मौसम अच्छा रहता है. इसको फ़रवरी,-मार्च और जून,-जुलाई में उगाया जा सकता है. 

इसके लिए 20 से 30 डिग्री तक का तापमान उचित रहता जो की इसके बीज को अंकुरित होने में सहायता करता है. 17 डिग्री से कम के तापमान पर इसे उगाना संभव नहीं है. 

लोबिया की उन्नत प्रजातियां:

हमारे कृषि वैज्ञानिक लगातार अपनी फसलों में उन्नत किस्में लेन के लिए मेहनत करते रहते हैं. लोबिया के लिए भी कुछ अच्छी पैदावार वाली किस्में विकसित की हैं. लोबिया की कुछ उन्नत प्रजातियां हैं जो निचे दी गई हैं|

  1. पूसा कोमल: लोबिया की यह किस्म रोग प्रतिरोधक है. इसमें आसानी से रोग नहीं आता है. इस किस्म की बुवाई बसंत, ग्रीष्म और बारिश, तीनों मौसम में आसानी से की जा सकती है. इसकी फलियों का रंग हल्का हरा होता है. यह मोटा गुदेदार होता है, जो कि 20 से 22 सेमी लम्बा होता है. इस किस्म की बुवाई से प्रति हेक्टेयर 100 से 120 क्विंटल पैदावार मिल जाती है|
  2. पूसा बरसाती: जैसा की नाम से ही पता चलता है इसको बरसात के मौसम में यानि जुलाई के महीने में लगाना ज्यादा सही रहता है. इसकी फलियों का रंग हल्का हरा होता है, जो कि 26 से 28 सेमी लंबी होती है. खास बात है कि यह किस्म लगभग 45 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 70 से 75 क्विंटल पैदावार मिल जाती है.
  3. अर्का गरिमा: अर्का गरिमा पौधे ऊँचे और लम्बे होते है तथा ये पशु चारे के लिए भी उपयुक्त होते हैं। फलियाँ हल्की हरी, लंबी, मोटी, गोल, माँसल और रेशे-रहित हैं। सब्जी बनाने के लिए उत्तम हैं। ताप और कम नमी के प्रति सहनशील है।
  4. पूसा फालगुनी: जैसा की नाम से विदित हो रहा है इसको फ़रवरी और मार्च के महीने में लगाया जाता है. इसका पौधा छोटा तथा झाड़ीनुमा किस्म के होते है| इसकी फली का रंग गहरा हरा होता है. इनकी लंबाई 10 से 20 सेमी होती है. खास बात है कि यह लगभग 60 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं. इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 70 से 75 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.
  5. पूसा दोफसली: किस्म को फ़रवरी से लेकर जुलाई, अगस्त तक लगाया जा सकता है, ये तीनों मौसम में लगाई जाती है. इसकी फली का रंग हल्का हरा पाया जाता है. यह लगभग 17 से 18 सेमी लंबी होती है. यह 45 से 50 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं. इससे प्रति हेक्टेयर 75 से 80 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.
एकीकृत कृषि प्रणाली से खेत को बना दिया टूरिज्म पॉइंट

एकीकृत कृषि प्रणाली से खेत को बना दिया टूरिज्म पॉइंट

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम मॉडल (Integrated Farming System Model) यानी एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली मॉडल (ekeekrt ya samekit krshi pranaalee Model) को बिहार के एक नर्सरी एवं फार्म में नई दशा-दिशा मिली है। पटना के नौबतपुर के पास कराई गांव में पेशे से सिविल इंजीनियर किसान ने इंटीग्रेटेड फार्मिंग (INTEGRATED FARMING) को विलेज टूरिज्म (Village Tourism) में तब्दील कर लोगों का ध्यान खींचा है। कराई ग्रामीण पर्यटन प्राकृतिक पार्क नौबतपुर पटना बिहार (Karai Gramin Paryatan Prakritik Park, Naubatpur, Patna, Bihar) महज दो साल में क्षेत्र की खास पहचान बन चुका है।

लीज पर ली गई कुल 7 एकड़ भूमि पर खान-पान, मनोरंजन से लेकर इंटीग्रेटेड फार्मिंग के बारे में जानकारी जुटाकर प्रेरणा लेने के लिए काफी कुछ मौजूद है। एकीकृत कृषि प्रणाली से खेती किसानी को ग्रामीण पर्यटन (Village Tourism) का केंद्र बनाने के लिए सिविल इंजीनियर दीपक कुमार ने क्या कुछ जतन किए, इसके बारे में जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि आखिर इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली (ekeekrt ya samekit krshi pranaalee) क्या है।

एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली (Integrated Farming System)

एकीकृत कृषि प्रणाली किसानी की वह पद्धति है जिसमे, कृषि के विभिन्न घटकों जैसे फसल पैदावार, पशु पालन, फल एवं साग-सब्जी पैदावार, मधुमक्खी पालन, कृषि वानिकी, मत्स्य पालन आदि तरीकों को एक दूसरे के पूरक बतौर समन्वित तरीके से उपयोग में लाया जाता है। इस पद्धति की खेती, प्रकृति के उसी चक्र की तरह कार्य करती है, जिस तरह प्रकृति के ये घटक एक दूसरे के पूरक होते हैं। 

इसमें घटकों को समेकित कर संसाधनों की क्षमता, उत्पादकता एवं लाभ प्रदान करने की क्षमता में वृद्धि स्वतः हो जाती है। इस प्रणाली की सबसे खास बात यह है कि इसमें भूमि, स्वास्थ्य के साथ ही पर्यावरण का संतुलन भी सुरक्षित रहता है। हम बात कर रहे थे, बिहार में पटना जिले के नौबतपुर के नजदीकी गांव कराई की। यहां बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड में कार्यरत सिविल इंजीनियर दीपक कुमार ने समेकित कृषि प्रणाली को विलेज टूरिज्म का रूप देकर कृषि आय के अतिरिक्त विकल्प का जरिया तलाशा है।

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सफलता की कहानी अब तक

जैसा कि हमने बताया कि, इंटीग्रेटेड फार्मिंग में खेती के घटकों को एक दूसरे के पूरक के रूप मेें उपयोग किया जाता है, इसी तर्ज पर इंजीनियर दीपक कुमार ने सफलता की इबारत दर्ज की है। उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन बेचकर, पिछले साल 2 जून 2021 को 7 एकड़ लीज पर ली गई जमीन पर अपने सपनों की बुनियाद खड़ी की थी। बचपन से कृषि कार्य में रुचि रखने वाले दीपक कुमार इस भूमि पर समेकित कृषि के लिए अब तक 30 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं। इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम के उदाहरण के लिए उनका फार्म अब इलाके के साथ ही, देश के अन्य किसान मित्रों के लिए आदर्श मॉडल बनकर उभर रहा है। उनके फार्म में कृषि संबंधी सभी तरह की फार्मिंग का लक्ष्य रखा गया है। 

इस मॉडल कृषि फार्म में बकरी, मुर्गा-मुर्गी, कड़कनाथ, मछली, बत्तख, श्वान, विलायती चूहों, विदेशी नस्ल के पिग, जापानी एवं सफेद बटेर संग सारस का लालन-पालन हो रहा है। मुख्य फसलों के लिए भी यहां स्थान सुरक्षित है। आपको बता दें प्रगतिशील कृषक दीपक कुमार ने इंटीग्रेटेड फार्मिंग के इन घटकों के जरिए ही विलेज टूरिज्म का विस्तार कर कृषि आमदनी का अतिरिक्त जरिया तलाशा है। मछली एवं सारस के पालन के लिए बनाए गए तालाब के पानी में टूरिस्ट या विजिटर्स नौकायन का लुत्फ ले सकते हैं।

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इसके अलावा यहां तैयार रेस्टॉरेंट में वे अपनी पसंद की प्रजाति के मुर्गा-मुर्गी और मछली के स्वाद का भी लुत्फ ले सकते हैं। इस फार्म के रेस्टॉरेंट में कड़कनाथ मुर्गे की चाहत विजिटर्स पूरी कर सकते हैं। इलाके के लोगों के लिए यह फार्म जन्मदिन जैसे छोटे- मोटे पारिवारिक कार्यक्रमों के साथ ही छुट्टी के दिन सैरगाह का बेहतरीन विकल्प बन गया है।

अगले साल से होगा मुनाफा

दीपक कुमार ने मेरीखेती से चर्चा के दौरान बताया, कि फिलहाल फार्म से होने वाली आय उसके रखरखाव में ही खर्च हो जाती है। इससे सतत लाभ हासिल करने के लिए उन्हें अभी और एक साल तक कड़ी मेहनत करनी होगी। नौकरी के कारण कम समय दे पाने की विवशता जताते हुए उन्होंने बताया कि पर्याप्त ध्यान न दिए जाने के कारण लाभ हासिल करने में देरी हुई, क्योंकि वे उतना ध्यान फार्म प्रबंधन पर नहीं दे पाते जितने की उसके लिए अनिवार्य दरकार है।

हालांकि वे गर्व से बताते हैं कि उनकी पत्नी उनके इस सपने को साकार करने में हर कदम पर साथ दे रही हैं। उन्होंने अन्य कृषकों को सलाह देते हुए कहा कि जितना उन्होंने निवेश किया है, उतने मेंं दूसरे किसान लगन से मेहनत कर एकीकृत किसानी के प्रत्येक घटक से लाखों रुपए की कमाई प्राप्त कर सकते हैं।

इनका सहयोग

उन्होंने बताया कि वेटनरी कॉलेज पटना के वीसी एवं डॉक्टर पंकज से उनको समेकित कृषि के बारे में समय-समय पर बेशकीमती सलाह प्राप्त हुई, जिससे उनके लिए मंजिल आसान होती गई। वे बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट पर उन्होंने किसी और से किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं जुटाई है एवं अपने स्तर पर ही आवश्यक धन राशि का प्रबंध किया।

युवाओं को जोड़ने की इच्छा

समेकित कृषि को अपनाने का कारण वे बेरोजगारी का समाधान मानते हैं। उनका मानना है कि ऐसे प्रोजेक्ट्स के कारण इलाके के बेरोजगारों को आमदनी का जरिया भी प्राप्त हो सकेगा।

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नए प्रयोग

आधार स्थापना के साथ ही अब दीपक कुमार के कृषि फार्म पर गोबर गैस प्लांट ने काम करना शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि उनके फार्म पर गाय, बकरी, भैंस, सभी पशुओं के प्रिय आहार, सौ फीसदी से भी अधिक प्रोटीन से भरपूर अजोला की भी खेती की जा रही है। इस चारा आहार से पशु की क्षमता में वृद्धि होती है।

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आपको बता दें अजोला घास जिसे मच्छर फर्न (Mosquito ferns) भी कहा जाता है, जल की सतह पर तैरने वाला फर्न है। अजोला अथवा एजोला (Azolla) छोटे-छोटे समूह में गठित हरे रंग के गुच्छों में जल में पनपता है। जैव उर्वरक के अलावा यह कुक्कुट, मछली और पशुओं का पसंदीदा चारा भी है। इसके अलावा समेकित कृषि प्रणाली आधारित कृषि फार्म में हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) तकनीक द्वारा निर्मित हरा चारा तैयार किया जा रहा है। 

इसमेें गेहूं, मक्का का चारा तैयार होता है। आठ से दस दिन की इस प्रक्रिया के उपरांत चारा तैयार हो जाता है। अनुकूल परिस्थितियों में हाइड्रोपोनिक्स चारे में 9 दिन में 25 से 30 सेंटीमीटर तक वृद्धि दर्ज हो जाती है। इस स्पेशल कैटल डाइट में प्रोटीन और पाचन योग्य ऊर्जा का प्रचुर भंडार मौजूद है। उनके अनुभव से वे बताते हैं कि इस प्रक्रिया में लगने वाला एक किलो गेहूं या मक्का तैयार होने के बाद दस किलो के बराबर हो जाता है। अल्प लागत में प्रोटीन से भरपूर तैयार यह चारा फार्म में पल रहे प्रत्येक जीव के जीवन चक्र में प्राकृतिक रूप से कारगर भूमिका निभाता है।

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हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) अर्थात जल संवर्धन विधि से हरा चारा तैयार करने में मिट्टी की जरूरत नहीं होती। इसे केवल पानी की मदद से अनाज उगाकर निर्मित किया जा सकता है। इस विधि से निर्मित चारे को ही हाइड्रोपोनिक्स चारा कहते हैं। यदि आप भी इस फार्म के आसपास से यदि गुजर रहे हों तो यहां समेकित कृषि प्रणाली में पलने बढ़ने वाले जीवों और उनके जीवन चक्र को समझ सकते हैं। 

अन्य कृषि मित्र इस तरह की खेती से अपने दीर्घकालिक लाभ का प्रबंध कर सकते हैं। (फार्म संचालक दीपक कुमार द्वारा दूरभाष संपर्क पर दी गई जानकारी पर आधारित, आप इस फार्म के बारे में फेसबुक लिंक पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।) 

संपर्क नंबर - 8797538129, दीपक कुमार 

फेसबुक लिंक- https://m.facebook.com/Karai-Gramin-Paryatan-Prakritik-Park-Naubatpur-Patna-Bihar-100700769021186/videos/1087392402043515/

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इस घास के सेवन से बढ़ सकती है मवेशियों की दुग्ध उत्पादन क्षमता; 10 से 15% तक इजाफा संभव

इस घास के सेवन से बढ़ सकती है मवेशियों की दुग्ध उत्पादन क्षमता; 10 से 15% तक इजाफा संभव

खेती और पशुपालन का साथ चोली दामन का रहा है. बहुत से किसान ऐसे हैं जो फसल उगाने के साथ-साथ पशुपालन से भी जुड़े हुए हैं. इसके अलावा हमारे देश में कुछ किसान ऐसे भी हैं जिनके पास खेती करने के लिए बहुत ज्यादा जमीन नहीं होती है तो ऐसे में वह अपनी जीविका कमाने के लिए लगभग पूरी तरह से पशुपालन पर ही निर्भर रहते हैं. पशु पालन करने के लिए उन्नत पशुधन जितना ज्यादा जरूरी है उतना ही ज्यादा महत्वपूर्ण है कि किसानों के पास हरा चारा उपलब्ध रहे. खासकर अगर किसान दुग्ध उत्पादन से अपनी जीविका चलाना चाहते हैं तो उनके पास साल भर  हरे चारे का इंतजाम होना बेहद जरूरी हो जाता है. ऐसे तो हरे चारे के लिए बरसीम,जिरका, गिन्नी, पैरा जैसे कई तो है के चारे इस्तेमाल किए जाते हैं लेकिन अगर आप चाहते हैं कि आपका पशु ज्यादा से ज्यादा दूध दे तो इसके लिए नेपियर घास को सबसे ज्यादा अच्छा माना गया है. थोड़े ही समय में यह घास बहुत ज्यादा ऊंची हो जाती है और यही कारण है कि इसे’  हाथी घास के नाम से भी जाना जाता है. सबसे पहली अफ्रीका में उगाई जाने वाली यह नेपियर घास भारत में 1912 में पहली बार तमिलनाडु में उगाई गई थी और उसके बाद इस पर कई तरह के शोध करते हुए इसे और ज्यादा  बढ़िया क्वालिटी का कर दिया गया है.

एक बार लगा कर कर सकते हैं 5 साल तक कटाई

नेपियर घास की सबसे अच्छी बात यह है कि इसे हर तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है और साथ ही इसके लिए बहुत ज्यादा सिंचाई की जरूरत ही नहीं लगती है. एक बार इसे उगाने के बाद 60 से 65 दिन के भीतर इसकी पहली कटाई की जा सकती है और उसके बाद हर 30 से 35 दिन के बीच में आप इस की कटाई जारी रख सकते हैं. यह घास ना केवल आपके पशुओं के लिए अच्छी है बल्कि ये भूमि संरक्षण का भी काम करती है.इसमें प्रोटीन 8-10 फ़ीसदी, रेशा 30 फ़ीसदी और कैल्सियम 0.5 फ़ीसदी होता है. इसे दलहनी चारे के साथ मिलाकर पशुओं को खिलाना चाहिए. यह भी पढ़ें: हरा चारा गौ के लिए ( Green Fodder for Cow) अगर आपके पास चार से पांच पशुओं है तो आप केवल आधा बीघा जमीन में है घास लगाकर उनका अच्छी तरह से पालन पोषण कर सकते हैं.

कैसे करें नेपियर घास की खेती?

अगर आप इस गांव का उत्पादन गर्मियों की धूप और हल्की बारिश के समय में करते हैं तो आपको बहुत अच्छी खासी फसल का उत्पादन में सकता है. गर्मियों के मुकाबले सर्दियों में यह घास जरा धीमी गति से बढ़ती है इसीलिए किसान जून-जुलाई के महीनों में इसकी सबसे ज्यादा बुवाई करते हैं और फरवरी के आसपास की कटाई चालू हो जाती हैं. नेपियर घास की खेती करते समय हमें गहरी जुताई करते हुए खेत में मौजूदा सभी तरह के खरपतवार को खत्म कर देना चाहिए.  इस फसल से हमें बीज नहीं मिलता है क्योंकि इसे तने की कटिंग करते हुए बोया जाता.

खाने से बढ़ जाती है पशुओं की दुग्ध क्षमता

नेपियर घास एक ऐसी खास है जिसे अगर दलहन के चारे में मिलाकर मवेशियों को खिलाया जाए तो कुछ ही दिनों में उनके दूध देने की क्षमता 10 से 15% तक बढ़ सकती है. ऐसे में पशुपालक आजकल बढ़-चढ़कर इस फसल का उत्पादन कर रहे हैं ताकि वह ज्यादा से ज्यादा दूध उत्पादन के जरिए मुनाफा कमा सकें.